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Wednesday, August 10, 2011

आज बारिश कि एक बून्द पडते ही एसा लगा, जॅसे मौसम मेरे लिये ही ब्दला हे


Hi reader's. Today's blog is a hindi poem written by my college friend SATYAM MISHRA. He is a budding poet. I loved this poem a lot. please read it and encourage his creation.


आज बारिश कि एक बून्द पडते ही एसा लगा, जॅसे मौसम मेरे लिये ही ब्दला हे !!!!


आज जॅसे हवा कुछ कह्ना चाह्ती हॅ !
आज जॅसे बून्दे कुछ सुनाना चहती हॅ !
क्यो आज ये बाद्ल कुछ इशारा कर के कह् रही हॅ !
तेरे तन्हा रह्ने के दिन हमारे साथ बह रहे है !




ये बुलबुले कुछ गुफ्तगु कर रहे हॅ !
एसा लगता हॅ, मूझे मुस्कुरने को कह रह हॅ !
क्यो लग रह हॅ, कोई मेरा इन्तजार कर रहा हॅ !
और मुझे मिलने को आहे भर रहा हॅ !


ये शान्त नदी अचानक क्यो लहरा रही हॅ !
य़ा फिर अपनी जुबानी कोई इशारा कर रही हॅ !
कही उस किनारे पर किसी को मेरा इन्तजार तो नही !
अगर एसा हॅ तो खुदा बता दे उसे मॅ भी तो हु यही !




क्यो लग रहा हॅ, कोई मेरे लिये मोती भरी सीपीया चुन रहा हॅ !
वो और कोई नही मेरे गाव के झरने का ही क़िनारा हॅ !
बस खुदा मिला दे अब, ना एक पल भी उसके बिना मेरा गुजारा हॅ !




पर सुन दाता, मत खेलना ये खेल दुबारा,
अगर कुछ दिनो का साथ् फ़िर अलग-अलग किनारा हॅ !!
जी लून्गा मॅ, अब तक का वक्त गुजरा हॅ !
पर खो बॅठुन्गा जिन्द्गी से, अगर पिचला पन्ना तुने फिर दोहराया हॅ !!!!




1 comment:

  1. i loved your friend's effort....and his poem.....
    and its good that u are encouraging him to write more and more.....:)

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